
भारत और चीन: प्राचीन सभ्यताओं से आधुनिक प्रगति तक के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर आओ जाने कि भारत के दिन प्रतिदिन हर क्षेत्र में अपने पड़ोसी देश चीन से पिछड़ने के कारण
भारत और चीन दोनों ही प्राचीन सभ्यताएं हैं, जो ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक रूप से विश्व को प्रभावित करती आई हैं। हालांकि आधुनिक समय में चीन ने आर्थिक, सामाजिक और तकनीकी क्षेत्रों में भारत की तुलना में अधिक तेजी से प्रगति की है। इस अंतर के पीछे कई ऐतिहासिक, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक कारण छिपे हैं। आइए इस यात्रा को विस्तार से समझें।
1. चीन का भारत से पिछड़ना (1947-1978)
1947-1949: स्वतंत्रता और नई शुरुआत
प्रारंभिक आर्थिक स्थिति
भारत का समाजवादी मॉडल
चीन की प्रारंभिक विफलताएं
2. बराबरी की स्थिति (1978 के आसपास)
1970 के दशक के अंत तक भारत और चीन की प्रति व्यक्ति जीडीपी लगभग समान थी:
1978 में चीन का बदलाव
डेंग शियाओपिंग के नेतृत्व में चीन ने "सुधार और खुलापन" नीति लागू की। यह कदम चीन के लिए विकास के नए युग की शुरुआत था।
3. चीन का भारत से आगे निकलना (1980 के बाद)
(a) आर्थिक नीतियां:
(b) जनसंख्या नियंत्रण
(c) औद्योगिकीकरण और बुनियादी ढांचा
(d) शिक्षा और कौशल विकास
(e) निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था
(f) राजनीतिक स्थिरता
4. चीन की जीडीपी भारत से कब आगे निकली?
5. भारत के चीन से पिछड़ने के प्रमुख कारण
(i) नीतिगत अंतर
(ii) बुनियादी ढांचा
(iii) मानव पूंजी
(iv) प्रशासन और भ्रष्टाचार
(v) निर्यात में कमी
6. भारत के लिए सबक और संभावनाएं
भारत और चीन, दोनों ही प्राचीन सभ्यताएं और तेजी से उभरती हुई आर्थिक शक्तियां हैं। परंतु विकास की दौड़ में, चीन ने जहां वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिति सुदृढ़ की है, वहीं भारत अभी भी कई चुनौतियों से जूझ रहा है। इन दोनों देशों की प्रगति में नागरिकों के व्यवहार और देश प्रेम की भूमिका का तुलनात्मक अध्ययन महत्वपूर्ण है।
चीन में नागरिकों का देश के प्रति समर्पण, अनुशासन और सामूहिक हितों को प्राथमिकता देने की संस्कृति प्रबल है। यह वहां की कठोर शासन प्रणाली और नागरिकों के बचपन से ही अनुशासनात्मक प्रशिक्षण का परिणाम है। वहां, व्यक्तिगत आकांक्षाओं से अधिक महत्व राष्ट्रहित को दिया जाता है। उदाहरण के लिए, औद्योगिक और तकनीकी प्रगति में नागरिकों ने सरकार के नेतृत्व में सामूहिक प्रयास किये हैं।
इसके विपरीत, भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विविधताओं का सम्मान प्रदान करती है। लेकिन इसी स्वतंत्रता के साथ कई बार व्यक्तिगत हित राष्ट्रहित से ऊपर रखे जाने लगते हैं। समाज में भ्रष्टाचार, अनुशासनहीनता और सामूहिक प्रयासों की कमी स्पष्ट दिखाई देती है। हालांकि, भारत में देशभक्ति का जज्बा गहरा है, लेकिन यह प्रायः भावनात्मक स्तर तक सीमित रह जाता है और ठोस क्रियान्वयन में बदलने में कमी रह जाती है।
इस अंतर के पीछे एक प्रमुख कारण शिक्षा प्रणाली और सामाजिक संरचना है। चीन की शिक्षा प्रणाली में राष्ट्र के प्रति समर्पण और सामूहिक प्रयासों को महत्व दिया जाता है, जबकि भारत में यह पहल अक्सर प्रेरणात्मक भाषणों और किताबों तक सीमित रहती है।
यदि भारत को चीन की तरह वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति मजबूत करनी है, तो नागरिकों में अनुशासन, सामूहिक प्रयास और राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखने की भावना का विकास करना आवश्यक है। इसके लिए शिक्षा, नेतृत्व और सामाजिक जागरूकता में ठोस सुधार की आवश्यकता है।
7. निष्कर्ष: भारत की संभावनाएं
भारत के पास अब भी प्रगति की अपार संभावनाएं हैं।
यदि भारत सही नीतियां अपनाए और अपने संसाधनों का कुशलता से उपयोग करे, तो यह न केवल चीन को चुनौती दे सकता है, बल्कि वैश्विक शक्ति के रूप में उभर सकता है।
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