
भारत को भी कोलंबिया से सीखने की ज़रूरत
भारत जैसे विशाल और सशक्त राष्ट्र को अपने नागरिकों के सम्मान और संप्रभुता की रक्षा के लिए अधिक दृढ़ता दिखाने की आवश्यकता है। कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो के हालिया निर्णय ने यह साबित कर दिया कि एक छोटे देश का नेतृत्व भी अपने नागरिकों के आत्मसम्मान और राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रति संकल्पित हो सकता है। जबकि भारत, जो स्वयं को ‘विश्वगुरु’ और ‘वैश्विक शक्ति’ मानता है, कई मौकों पर अपने नागरिकों के सम्मान की रक्षा करने में निष्क्रिय दिखाई देता है।
गुस्तावो पेट्रो का निर्णय: एक उदाहरण
कोलंबिया, जो क्षेत्रफल और अर्थव्यवस्था के लिहाज़ से भारत की तुलना में बहुत छोटा देश है, लेकिन वहां की सरकार ने अपने नागरिकों की गरिमा और स्वाभिमान को सर्वोपरि रखा। अमेरिकी सेना के विमान को अपने देश की धरती पर उतरने से रोकना और अपने नागरिकों को सरकारी विमान से सम्मानपूर्वक स्वदेश वापस लाने का निर्णय लेना, एक सशक्त राष्ट्र की पहचान है। इससे यह स्पष्ट होता है कि वहां की सरकार अपने नागरिकों को मात्र ‘अंकों’ के रूप में नहीं देखती, बल्कि उनके सम्मान और संप्रभुता की रक्षा को प्राथमिकता देती है।
इसके अतिरिक्त, पेट्रो सरकार द्वारा अमेरिकी पेट्रोलियम कंपनी के साथ अरबों डॉलर का समझौता रद्द करना, यह दर्शाता है कि कोलंबिया आर्थिक दबाव के आगे झुकने के बजाय अपने सिद्धांतों पर अडिग रहता है। यह एक ऐसा दृष्टिकोण है, जिसकी भारत जैसे देशों को भी आवश्यकता है।
भारत की स्थिति और निष्क्रियता
भारत, जो स्वयं को ‘विश्वगुरु’ कहकर गर्व महसूस करता है, कई बार अपने नागरिकों के सम्मान की रक्षा करने में विफल रहा है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के प्रवासी नागरिकों और श्रमिकों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता रहा है, लेकिन भारत सरकार अक्सर इसे नज़रअंदाज़ कर देती है।
1. खाड़ी देशों में भारतीय श्रमिकों की दुर्दशा
2. भारतीय छात्रों के साथ अन्याय
3. भारतीय नागरिकों पर अंतरराष्ट्रीय हमले और सरकार की चुप्पी
भारत को क्या करना चाहिए?
भारत को चाहिए कि वह अपने नागरिकों की सुरक्षा, सम्मान और गरिमा की रक्षा के लिए कोलंबिया की तरह सख्त रुख अपनाए।
निष्क्रियता से सम्मान नहीं मिलता
भारत की गिनती विश्व की सबसे तेज़ी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में होती है, लेकिन केवल आर्थिक प्रगति से ही कोई देश सशक्त नहीं बनता। जब तक भारत अपने नागरिकों की रक्षा, सम्मान और आत्मसम्मान को प्राथमिकता नहीं देगा, तब तक ‘विश्वगुरु’ और ‘महाशक्ति’ जैसे दावे खोखले ही रहेंगे।
कोलंबिया जैसे छोटे देश ने जो साहस दिखाया, वह भारत भी दिखा सकता है – बस इच्छाशक्ति और आत्मसम्मान की आवश्यकता है।
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